Rabta
इक वेला ओ सी जद असी
दिल दिया गल्ला कर्दे सी
हुन तू सागर बन बैठा है
मैं बूंद तेरी बादलां विच
वादा कित्ता सी तूने कि
मैनू कदी वी छढना नहीं
मैं वी इरादा कित्ता है
तेरा ज़िकर हुन कढना नहीं
तेरी चौखट पर दस्तक देना
मेरे प्रेम की एक अदा थी
तुझे खुद से पृथक माना
ये मेरे कर्मों की सज़ा थी
तू हमेशा से मुझमे ही था
मैं सदा से तुझमे थी समाई
खोज रही थी उम्रभर जिसे
वो घड़ी खुद को मिटाकर आई
कहते हैं पाप और पुण्य का फैसला
सिर्फ वह मलिक करता है
पर क्या बुरे कर्म करनेवाला
उस पल में कुदरत से डरता है
किसी की मौज किसी की मौत है
पर कर्मों का फल हर शखस भरता है
फिर लाख माथे टेक लो पत्थर के आगे
भगवान भी उसमें बैठने से डरता है
उम्र भर लक्ष्मी को रूलानेवाला
कभी विष्णु नहीं बनता है
किसी बच्चे को अकेला करके
कोई माता या पिता नहीं बनता है
बूढे मा बाप को तन्हा कर
कोई जीवन नहीं फलता है
किसी की निन्दा करके बन्दे
तू समझदार नहीं बनता है
पर ये वह जगह है दोस्तो
जहां राई का पहाड बनता है
दिल की दुहाई दो किसी को
तो इलजाम तुम्ही पे बनता है
किस दुनिया में आ गए काफिर
हर रिश्ता जहां फांसी का फंदा है
देख लो भाई अपनी अपनी
किसे परवाह यहां कौन ज़िन्दा है
जीवन कुछ भी कह लो फिर
ख़ुशी और गम का पलिन्दा है
यहां हर कोई खुद के लिए ज़िन्दा है ….
शुकराना तेरे नाम का
हर पल ही गाऊँ मैं
हस्ती मेरी मिट जाये
कि तुझमे मिल जाऊँ मैं
आज महायोग का फिर मौसम आया
सभी ने ग्यान् के सागर में गोता लगाया
किसी ने अपनी जिग्यासा को बुझाया
तो किसी ने ईश्वर को हृदय से लगाया
किन आँखो में आंसुओं का सैलाब आया
तो किसी ने सत्य को अंतह में पाया
प्रभु तेरी महिमा कैसे अब गाऊँ मैं
जब मेरा अस्तित्व भी तुझी में समाया
तेरी शान के आगे प्रभु
मेरी पात्रता छोटी है
तेरे महासत्य के आगे
मेरी ज़िन्दगी खोटी है
जिस हृदय में प्रेम ना हो वहाँ ईश्वर का वास नहीं और जिस मनुष्य के अंतह में संस्कार नहीं वह पशु तुल्य है l
बिन फेरे माला तुम्हे जप लूँ मैं
बिन लिए सांस तुम्हें जी लूँ मैं
बिन रखे आस तुम्हें पा लूँ मैं
कुछ ऐसा है तुमसे प्यार मलिक
बारिश की बूंदो का इंतिजार है
आसमां के आंसुओं में प्यार है
ऐ खुदा रहम कर इस बंदी पर
चन्द पलों का अब ये किर्दार है
ज़िन्दगी बीत गई
सच्चा प्यार ना मिला
तेरे होते हुए मौला
कैसे यार ना मिला
खुले आसमा के नीचे
अब तेरा इंतजार है
खुदा कहूँ तुझे कि फिर
तू परवर्दीगार है
रेगिस्तां के इस प्यासे
पर तरस खा अब मौला
मरकार भी जीने का आलम
यूहीं बरकारार है
जीवन जीना अगर एक कला है
तो नारी से बड़ा कालाकार नहीं
और मौत अगर अंतिम मंजिल
तो तुझसे बेहतर कोई राही नहीं
तू समन्दर से भी गेहरी है
तुझमे डूबकर ही ज़िन्दगी है
तू जो ना हो इस दुनिया में
तो हर पल बस एक बंदगी है
तोड़ दे अपने ख्यालों के पिंजरे
और भर ले एक उन्मुक्त उडान
तेरे पंख जो अब भी बाकी हैं
उन्हें ताके है वो शांत आसमान
सब संतों में तुझको पाया
हर जीव में तू ही समाया
तुझसे ही है जीवन मरण
तेरा संसार तेरी रची माया
तू ही प्रभु एक शाश्वत है
निराकार व साकार काया
तुझसे आगे क्या मैं देखूँ
ये आत्मा भी तेरा ही साया
भस्म हो जाये जब सब व्यर्थ सामग्री
तब भभके मेरे महाकाल की अग्नी
उस प्रभु को कहाँ ढूंदूँ जो मुझी में समाया
उस परम् को कैसे कहूँ जो शब्दो के है पार
उसे किस मंदिर में पूजूँ जो स्थान के है पार
किस प्रार्थना से उसे पूकारूँ जो है अपरम्पार
कौन से पुष्प चढाऊँ ज़िसे सब कुछ ही स्वीकार
मेरा प्रभु मुझी में समाया मेरा हृदय ही संसार
कृपाशील हे ईश्वर मेरे कर दे अब बेडा पार
तेरे हाथ की वीना में सत्य छिपा है
कमल पर तेरे सम्पूर्ण ग्यान् की पोथी
तेरे हंस में छिपा शु द्धि का तत्त्व
हे जगदम्बा तुझे बारम्बार प्रणाम
हर पल हर दिन ज़िससे हर साल
हर आरम्भ तुझसे हे महाकाल
चंद लम्हों की बस बात थी
वह कैसी अधुरी मुलाकात थी?
कहत कबीर सुन रे संगत,
भाव सागर से तर जायेगा,
मन तुम राम कृष्ण सामर्थ्य,
ए वेला गया ते पछतायेगा।
आखों से जो बयां हो उसे शब्दों में कैसे पिरोहे ,
उस कब्र के निचे देखो कितने अरमान है सोये।
कोई भागते भागते मिल्खा सिंह बन जाता है तों कोई भगोडा,
किस राह पर चल रहे हो, खुदाबक्श खुद ही जांच लो।
ओ कैयेंदे है तेरे किस्मत विच लिखीं हैं,
जे मेरी सांस वि मेरे मालिक दि होवे,
फिर किसदी किस्मत पढेगा रे भक्तेया?
तूफानों के पीछे छूपा मौला,
जिंदगी की दास्तान लिख रहा है,
अंधेरों से फिर अब क्या डरना,
पीछे छूपा सूरज दिख रहा है।
मोहब्बतज़िस्म कि नहीं,
रूह की इबादत है,
कभी जो रूह बन जाओ,
तो बस दम भर लेना।
मोहब्बतज़िस्म कि नहीं,
रूह की इबादत है,
कभी जो रूह बन जाओ,
तो बस दम भर लेना।
वोह मां इसने ये श्रृष्टि है रचिई,
उसके नामस्मरण की घडियां आयीं,
शक्ति, उर्जा, प्राण सभी उस मां से,
जय हो अंतः माता जय महामयी।
तरह तरह के लोग यहाँ,
तरह तरह की बातें,
इन रिश्तों के बीच में,
कुछ सुनी सुनी रातें,
सत्य ईश्वर प्रेम आनंद,
सब सुनी-सुनाई बातें,
निर्जीव यहाँ हर शक्स,
निभाएँ रिश्तें नाते,
रिश्ता सच है इश्वर का,
दुजा बयां ना कोये,
मन की चाह सब यहाँ,
पर घाटे जो राम रची होये
अभ्यंकर शंकर अविनाश,
तुही से मथुरा, तुही से काशी,
तेरा वंदन, तेरा अभिनंदन,
सुर्यचंद्रमा, तेरी राशि,
बम बम बम भोले,
तेरे आगे धरती आकाश डोले,
तुझसे जिवन,तुझसेमरण,
साधु तुझसे भरते डोले,
त्रिपुरारी भोले नाथ शिव शंभो,
महादेव रुद्र आशुतोषनीलकंठ उमा,
महेश्वर विराट स्वरूपये अनंत,
द्रिष्टाये गुरू देवाः नमो नमः।
मुस्कुराते हुए इस बचपन को,युही मुट्ठी में कैद ना करे,
जि लेने देना इनकोदुनिया, बंदिशो में इन्हें कैद ना करना,
अनादित फूल है ए सब,इन्हें माला में घूंट ना रखना,
लाज, धर्म से परे रखकर, उन्हें मुक्त गगन में उड़ने देना,
तितलियों और परियों की कहानी, उस दुनिया से इन्हें दुर ना करना,
मीठी सी उस मुस्कराहट को, वक्त के हाथों क़ैद ना करना,
कागज़ के बने वो उड़ान खटोले, उन्मुक्त गगन में उड़ने देना।
अहंकारकी मॄत्यु ना हो तो आत्मा ना मिल पायेगी,
एक फुल ना मुरझाए तो नई कली कैसे खिल पायेगी।
आत्मा निरोगी रखने के लिए विश्वास और संस्कार जरूरी है,
तेरा मेहर ओ कर्म के बिना, बाबा ये जिंदगी अधुरी है।
शब्दसे निशब्द फिर शब्द विहीन,
श्रृष्टि अब मालूम पडती हैं संगिन।
खुद को सही मैं कहूं, मुझसे गलत होना कोये,
गलत और सही के करन हे, जिवन अज्ञान में सोये।
जितना मैं सुंदरता चाहुगा,
उतनी और कुरूपता बढती जाये,
जिस दिन दोनों को मैं अपनाउं,
उस दिन फिर ग्यान कि लऊ जल जाये।
कईजन्मोंके बाद ये जनम मिलता है,
उसकी रोशनी तले हर एक फुल मिलता है,
किसी फुल को तोड़ने से पहले जान लेना,
उसकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलते है।
तुम कर्मो की चादर संग ले जाओगे,
कि जो बोया है वही तुम काट पाओगे,
किस्मत तुम्हारी लिखीं हैं तुम्हीं ने यहाँ,
किस्मत से ज्यादा एक झर्रा भी ना पाओगे।
मोहब्बत ज़िस्म कि नहीं,
रूह की इबादत है,
कभी जो रूह बन जाओ
तो बस दम भर लेना।
जिस हृदय में प्रेम ना हो वहाँ ईश्वर का वास नहीं
और जिस मनुष्य के अंतह में संस्कार नहीं वह पशु तुल्य है l
बिन फेरे माला तुम्हे जप लूँ मैं
बिन लिए सांस तुम्हें जी लूँ मैं
बिन रखे आस तुम्हें पा लूँ मैं
कुछ ऐसा है तुमसे प्यार मलिक
नाले का पानी भी पानी
गंगा का पानी भी पानी
अमृत की बूंद भी पानी
विश का घूंट भी पानी
आँख से टपका आँसू पानी
खौलता हुआ खून भी पानी
गेहरे सागर का अस्तित्व पानी
तालाब की पेहचान रुका पानी
मौत से लड़ती दवा भी पानी
जीवन से लड़ती दारू भी पानी
बाढ का सैलाब भी वही पानी
बरसात की झंकार भी पानी
शरीर की राख भी मांगे पानी
कैलाश को नत्मस्तक मानसरोवर पानी
जीवन की कश्ती को पार ना लगाना प्रभु
कि किनारे पर खत्म हो जायेगी कहानीबहा दे ईश्वर आज बस इतना पानी
कि धुल जाये हर पाप की निशानी
बचा ले इस डूबते संसार को
फिर लिख दे एक नई कहानी
तेरी बूंद
कहते हैं पाप और पुण्य का फैसला
सिर्फ वह मलिक करता है
पर क्या बुरे कर्म करनेवाला
उस पल में कुदरत से डरता है
किसी की मौज किसी की मौत है
पर कर्मों का फल हर शखस भरता है
फिर लाख माथे टेक लो पत्थर के आगे
भगवान भी उसमें बैठने से डरता है
उम्र भर लक्ष्मी को रूलानेवाला
कभी विष्णु नहीं बनता है
किसी बच्चे को अकेला करके
कोई माता या पिता नहीं बनता है
बूढे मा बाप को तन्हा कर
कोई जीवन नहीं फलता है
किसी की निन्दा करके बन्दे
तू समझदार नहीं बनता है
पर ये वह जगह है दोस्तो
जहां राई का पहाड बनता है
दिल की दुहाई दो किसी को
तो इलजाम तुम्ही पे बनता है
किस दुनिया में आ गए काफिर
हर रिश्ता जहां फांसी का फंदा है
देख लो भाई अपनी अपनी
किसे परवाह यहां कौन ज़िन्दा है
जीवन कुछ भी कह लो फिर
ख़ुशी और गम का पलिन्दा है
यहां हर कोई खुद के लिए ज़िन्दा है ….
शुकराना तेरे नाम का
हर पल ही गाऊँ मैं
हस्ती मेरी मिट जाये
कि तुझमे मिल जाऊँ मैं
बारिश की बूंदो का इंतिजार है
आसमां के आंसुओं में प्यार है
ऐ खुदा रहम कर इस बंदी पर
चन्द पलों का अब ये किर्दार है
ज़िन्दगी बीत गई
सच्चा प्यार ना मिला
तेरे होते हुए मौला
कैसे यार ना मिला
खुले आसमा के नीचे
अब तेरा इंतजार है
खुदा कहूँ तुझे कि फिर
तू परवर्दीगार है
रेगिस्तां के इस प्यासे
पर तरस खा अब मौला
मरकार भी जीने का आलम
यूहीं बरकारार है
सब संतों में तुझको पाया
हर जीव में तू ही समाया
तुझसे ही है जीवन मरण
तेरा संसार तेरी रची माया
तू ही प्रभु एक शाश्वत है
निराकार व साकार काया
तुझसे आगे क्या मैं देखूँ
ये आत्मा भी तेरा ही साया
उस प्रभु को कहाँ ढूंदूँ जो मुझी में समाया
उस परम् को कैसे कहूँ जो शब्दो के है पार
उसे किस मंदिर में पूजूँ जो स्थान के है पार
किस प्रार्थना से उसे पूकारूँ जो है अपरम्पार
कौन से पुष्प चढाऊँ ज़िसे सब कुछ ही स्वीकार
मेरा प्रभु मुझी में समाया मेरा हृदय ही संसार
कृपाशील हे ईश्वर मेरे कर दे अब बेडा पार
तेरे हाथ की वीना में सत्य छिपा है
कमल पर तेरे सम्पूर्ण ग्यान् की पोथी
तेरे हंस में छिपा शु द्धि का तत्त्व
हे जगदम्बा तुझे बारम्बार प्रणाम
भस्म हो जाये जब सब व्यर्थ सामग्री
तब भभके मेरे महाकाल की अग्
हर पल हर दिन ज़िससे हर साल
हर आरम्भ तुझसे हे महाक>
जीवन जीना अगर एक कला है
तो नारी से बड़ा कालाकार नहीं
और मौत अगर अंतिम मंजिल
तो तुझसे बेहतर कोई राही नहीं
तू समन्दर से भी गेहरी है
तुझमे डूबकर ही ज़िन्दगी है
तू जो ना हो इस दुनिया में
तो हर पल बस एक बंदगी है
तोड़ दे अपने ख्यालों के पिंजरे
और भर ले एक उन्मुक्त उडान
तेरे पंख जो अब भी बाकी हैं
उन्हें ताके है वो शांत आसमान